निज़ाम-ए-बस्त-ओ-कुशाद-ए-मानी सँवारते हैं हम अपने शेरों में तेरा पैकर उतारते हैं अजब तिलिस्मी फ़िज़ा है सारी बलाएँ चुप हैं ये किस बयाबाँ में रात दिन हम गुज़ारते हैं ग़ुबार-ए-दुनिया में गुम है जब से सवार-ए-वहशत अतश अतश दश्त ओ कोह ओ दरिया पुकारते हैं मुसाफ़िरान-ए-गुमाँ रहें क्यूँ कमर-ख़मीदा चलो ये पुश्तारा-ए-तमन्ना उतारते हैं जबीन-ए-अहल-ए-ग़रज़ पे कोई मुकालिमा क्या जहाँ तहाँ हाजतों की झोली पसारते हैं