निकल गए थे जो सहरा में अपने इतनी दूर वो लोग कौन से सूरज में जल रहे होंगे अदम की नींद में सोए हुए कहाँ हैं वो अब जो कल वजूद की आँखों को मल रहे होंगे मिले न हम को जवाब अपने जिन सवालों के किसी ज़माने में उन के भी हल रहे होंगे बस इस ख़याल से देखा तमाम लोगों को जो आज ऐसे हैं कैसे वो कल रहे होंगे फिर इब्तिदा की तरफ़ होगा इंतिहा का रुख़ हम एक दिन यहाँ शक्लें बदल रहे होंगे 'मलाल' ऐसे कई लोग होंगे रस्ते में जो तुम से तेज़ या आहिस्ता चल रहे होंगे