निकल जा शहर से जंगल की जानिब न मुड़ कर देख फिर दलदल की जानिब किसी अहल-ए-ख़िरद का सर न फूटे न पत्थर फेंक यूँ पागल की जानिब हुआ एहसास अपनी तिश्नगी का निगाहें जब उठीं बादल की जानिब न कर समझौता कोई तीरगी से बढ़े आँधी अगर मश’अल की जानिब कई सदियों से 'शैदा' तक रहे हैं हम अपने आने वाले कल की जानिब