निकाल ज़ात से बाहर निकाल तन्हाई कमाल जब है कि शेरों में डाल तन्हाई अज़ाब-ए-जाँ भी जहाँ में नहीं कोई ऐसा रफ़ीक़ भी है बड़ी बे-मिसाल तन्हाई तमाम ज़िंदगी दो वाक़िआत में यूँ है उरूज उस की रिफ़ाक़त ज़वाल तन्हाई कोई भी वक़्त हो तेरा ही ज़िक्र करती है कभी तो पूछे हमारा भी हाल तन्हाई अगरचे शहर में बिखरी है जा-ब-जा फिर भी 'शुजाअ' अपने लिए घर में पाल तन्हाई