निकले है जिंस-ए-हुस्न किसी कारवाँ में ये वो नहीं मताअ' कि हो हर दुकान में जाता है इक हुजूम-ए-ग़म इश्क़-जी के साथ हंगामा ले चले हैं हम उस भी जहान में यारब कोई तो वास्ता सर-गश्तगी का है यक इश्क़ भर रहा है तमाम आसमान में हम उस से आह सोज़-ए-दिल अपना न कह सके थे आतिश-ए-दरूँ से फफोले ज़बान में ग़म खींचने को कुछ तो तवानाई चाहिए सिवय्याँ न दिल में ताब न ताक़त है जान में ग़ाफ़िल न रहियो हम से कि हम वे नहीं रहे होता है अब तो हाल अजब एक आन में वे दिन गए कि आतिश-ए-ग़म दिल में थी निहाँ सोज़िश रहे है अब तो हर इक उस्तुख़्वान में दिल नज़र-ओ-दीदा-पेश-कश ऐ बाइस-ए-हयात सच कह कि जी लगे है तिरा किस मकान में खींचा न कर तू तेग़ कि इक दिन नहीं हैं हम ज़ालिम क़बाहतें हैं बहुत इम्तिहान में फाड़ा हज़ार जा से गरेबान-ए-सब्र-ए-'मीर' क्या कह गई नसीम-ए-सहर गुल के कान में