निकहत-ए-गुल हैं या सबा हैं हम नहीं मालूम कुछ कि क्या हैं हम रू-शनासी है हम को आईना-साँ एक आलम से आश्ना हैं हम ख़ाकसारी से बज़्म-ए-आलम में सफ़्हा-ए-नक़्श-ए-बोरिया हैं हम है हमीं से वो शाहिद-ए-मअ'नी हर्फ़-ए-मतलब के मुद्दआ हैं हम जाम-ए-मय साक़िया शिताबी दे कौन कहता है पारसा हैं हम शम्अ-साँ है दराज़ रिश्ता-ए-उम्र कि फ़ना होने से बक़ा हैं हम तेरे कूचा तलक की ताक़त है नहीं इतने शिकस्ता-पा हैं हम बाँग-ए-संख और नाला-ए-नाक़ूस कहे हमदम जो कम-नुमा हैं हम चश्म क्या कीजे वा ब-रंग-ए-हुबाब तुर्फ़त-उल-एेन में हवा हैं हम नर्गिसी चश्म था वो काफ़िर आह जिस के बीमार-ओ-मुब्तला हैं हम नाज़नीनान-ए-दहर के हर दम कुश्ता-ए-ग़म्ज़ा-ओ-अदा हैं हम ऐ वफ़ा तू किधर है हो दम-साज़ कुश्ता-ए-ख़ंजर-ए-जफ़ा हैं हम चश्म-ए-बद-दूर क्या ग़ज़ल है 'नसीर' ख़ूब इस फ़न में मर्हबा हैं हम