नींद उन की उचाट हो गई है आँखों में शराब उबल पड़ी है बेचैन है दिल उचाट है दिल बस्ती बस कर उजड़ गई है कलियों की सदा भी सुनते जाओ अफ़्साना क़रीब ख़त्म ही है इक घुन सा लगा हुआ है जी को जैसे कोई चीज़ खो गई है ग़म इतने उठाऊँगा कि दुनिया ख़ुद को कहने लगे ये आदमी है गुम होश नज़र उदास दिल सर्द 'महशर' की अजीब ज़िंदगी है