निस्बत वही माह-ए-आसमाँ से लाएँ तश्बीह-ए-रुख़ कहाँ से मिस्सी की सिफ़त बयाँ न होगी सौसन भी कहे जो सौ ज़बाँ से तश्बीह जो माँग की न हाथ आए लाऊँ मैं माँग कहकशाँ से सौदा है जो बुलबुलों को गुल का तिनके चुन लाएँ आशियाँ से ये हारिज-ए-शब वो माने-ए-रोज़ दरबाँ से लड़ूँ कि पासबाँ से जीतेंगे न हम से बाज़ी-ए-इश्क़ अग़्यार के पिट पड़ेंगे पाँसे है क़द्र-ए-सुख़न 'सख़ी' को हासिल याँ के हर पीर और जवाँ से