निशान अपना मिटाता जा रहा हूँ तिरे नज़दीक आता जा रहा हूँ मैं अपने ज़ौक़-ए-उल्फ़त के तसद्दुक़ सितम पर मुस्कुराता जा रहा हूँ मुसलसल बज रहा है बरबत-ए-जौर वफ़ा के गीत गाता जा रहा हूँ फ़साना नज़्अ' में नाकामियों का निगाहों से सुनाता जा रहा हूँ मोहब्बत होती जाती है मुकम्मल मुसीबत में समाता जा रहा हूँ मज़ाक़-ए-जुस्तुजू है अपना अपना उन्हें गुम हो के पाता जा रहा हूँ यहाँ तो हैरतें ही हैरतें हैं ये किस महफ़िल में आता जा रहा हूँ मिरी आहों के हैं दुनिया में चर्चे जहाँ पर 'अब्र' छाता जा रहा हूँ