नित-नए रंग में निकलता हूँ अपने ख़्वाबों के साथ चलता हूँ तारे अपने सफ़र में रहते हैं और मैं अपनी राह चलता हूँ गुमरही राह ख़ुद निकालती है नए रस्तों पे जब निकलता हूँ दूर रहता हूँ शाह-राहों से और पगडंडियों पे चलता हूँ पाँव अपने हैं लग़्ज़िशें अपनी ख़ुद ही गिरता हूँ ख़ुद सँभलता हूँ बर्फ़ रहता हूँ सर्द लम्हों में धूप के साथ बह निकलता हूँ मैं ही क़ौस-ए-क़ुज़ह में हूँ 'बेताब' मौसमों में भी मैं बदलता हूँ