नूर है रौशनी का हाला है इश्क़ तो रूह का उजाला है दिल में उतरे निहाल कर डाले इश्क़ का तौर ही निराला है वो तो कहता है आओ समझो तुम दिल में जिस ने ज्ञान डाला है जाल बुनती है नफ़्स की मकड़ी बस उतारो ये शर का जाला है दिल की दरगाह में झुका जब सर इश्क़ का बोल तब से बाला है दिल को महसूस बस हुआ जैसे इश्क़ रूई का नर्म गाला है ज़िक्र उन का ही रूह में उतरा इश्क़ उन का मिरा हवाला है ये सुलगता है आँच से ग़म की हिज्र का 'शाज़' दिल पे छाला है