नूर ही नूर है ख़यालों में कौन है ज़ेहन के उजालों में ज़िंदगी क्या जवाब दूँ तुझ को तू ने उलझा दिया सवालों में सुब्ह का नूर है तिरा चेहरा शाम का रंग तेरे बालों में अपनी गुम-गश्ता मंज़िलों के नुक़ूश हम ने ढूँडे हैं जलते छालों में मैं ने जो सच था कह दिया 'ज़हरा' ढूँढिए अब उसे हवालों में