नुमाइशों का गुज़र कब रह-ए-नजात में है इबादतों का मज़ा तो अँधेरी रात में है बढ़े जो तीरगी-ए-शब तो और मैं चमकूँ चमक सितारों के जैसी ही मिरी ज़ात में है बिछड़ने वाले को मैं इस लिए नहीं भूला वो आ भी सकता है ये भी तवक़्क़ुआ'त में है है ए'तिराफ़ कि तारीफ़ कर रहे हो तुम हसद का पहलू भी लेकिन तुम्हारी बात में है डुबोएगा हमें सैल-ए-सितम 'असर' कैसे ज़माने भर की दुआ तो हमारे साथ में है