नुमू की ख़ाक से उट्ठेगा फिर लहू मेरा अक़ब से वार करे चाहे जंग-जू मेरा लकीर खींच के मुझ पे वो फिर मुझे देखे निगार-ओ-नक़्श में चेहरा है हू-ब-हू मेरा रक़ीब-ए-तिश्ना तू जी भर के ख़ाक चाटेगा चटख़ के टूट गया हाथ में सुबू मेरा मैं अपनी रूह की तारीकियों में झाँक चुका निकल सका न कमीं-गाह से अदू मेरा ये रूप अपने मसीहा का देख कर 'साक़िब' अटक के रह ही गया साँस दर-गुलू मेरा