नूर-ओ-निकहत की ये बरसात कहाँ थी पहले ज़िंदगी इतनी हसीं रात कहाँ थी पहले अब तो पलकों पे सितारे से लरज़ उठते हैं ग़म-ए-महबूब की ये बात कहाँ थी पहले तेरी यादों से फ़रोज़ाँ हैं फ़ज़ाएँ जिन की ऐसी रातों से मुलाक़ात कहाँ थी पहले उन की बदमस्त निगाहों का करम है ऐ दिल ज़िंदगी बज़्म-ए-ख़राबात कहाँ थी पहले कैफ़ ये दर्द-ए-मोहब्बत ने किया है पैदा ये दिल-आवेज़ी-ए-नग़्मात कहाँ थी पहले आज यूँ दिल के तड़पने का भरम टूटा है हसरत-ए-लुत्फ़-ओ-इनायात कहाँ थी पहले 'नक़्श' उन शोख़ निगाहों का फ़ुसूँ है वर्ना दिल में ये शोरिश-ए-जज़्बात कहाँ थी पहले