ओ मियाँ बाँके है कहाँ की चाल तुम जो चलते हो नित ये बाँकी चाल नाज़-ए-रफ़्तार ये नहीं देखा हम ने देखी है इक जहाँ की चाल लाखों पामाल-ए-नाज़ हैं उन के कौन समझे है इन बुताँ की चाल कब्क को देख कर ये कहने लगा ये चले है हमारे हाँ की चाल रख के शतरंज-ए-ग़ाएबाना-ए-इश्क़ तुम चले इक तो इम्तिहाँ की चाल तिस पे दुश्मन हमारे जी की हुई कजी-ए-पेल-ए-आसमाँ की चाल 'मुसहफ़ी' भर चला वो रीश ओ बरूत हुए जस पीर-ए-ना-तवाँ की चाल