पड़ा हूँ ज़ेर-ए-क़दम ख़ाक-ए-रहगुज़र बन कर झुका हूँ मैं हमा-तन उस गली में सर बन कर निकल गया मिरी आँखों से मिस्ल-ए-ख़्वाब-व-ख़याल गुज़र गया दिल-ए-रौशन से वो नज़र बन कर किताब ओ ख़त ही के धोके में रह गए अग़्यार वो यार आप ही आया पयाम-बर बन कर किसी की तेग़-ए-निगह ने मिटा दिए धब्बे हमारे दाग़-ए-जिगर कट गए सिपर बन कर 'मज़ाक़' साक़ी-ए-कौसर मुझे सँभालेंगे नशे में बिगड़ी तबीअत मिरी अगर बन कर