पहले ही दिन खुला ये जवाब-ओ-सवाल में कुछ हुस्न उस के दिल में है कुछ ख़द्द-ओ-ख़ाल में सैलाब-ए-शौक़ मेरा तवाज़ुन तो ले गया लेकिन वो ख़ुश-मिज़ाज रहा ए'तिदाल में जिस्मों से मावरा भी हक़ाएक़ बहुत से हैं पाई है दिल ने रौशनी शाम-ए-विसाल में आई है बारहा तिरे आने से पेश-तर पाज़ेब की छनक मेरे कुंज-ए-ख़याल में तुझ से मिला न था तो यही सोचता था मैं इंसान ख़ुद-कफ़ील नहीं है जमाल में