पहले नज़्र लब-ओ-रुख़्सार करेगी दुनिया फिर तुझे बर-सर-ए-पैकार करेगी दुनिया गेसू-ए-ज़ीस्त को सुलझाने में गुज़़रेंगे दिन मुझ से इस दर्जा अगर प्यार करेगी दुनिया छोड़ देगी तुझे टकराने की ख़ातिर और फिर दर-ओ-दीवार से इंकार करेगी दुनिया मुझ को मुंसिफ़ के भी मंसब पे करेगी फ़ाएज़ झूट से लड़ने को तय्यार करेगी दुनिया मुझ को मसरूफ़ भी रक्खेगा कोई कार-ए-अबस वक़्त-ए-मसरफ़ पे ये बेकार करेगी दुनिया गेसू-ए-ज़ुल्मत-ए-शब मुझ को छुपा ले न कहीं इस पहले कि गिरफ़्तार गिरेगी दुनिया मैं तलबगार हूँ जीने का 'निज़ामी' लेकिन जाने कब ख़्वाब से बेदार करेगी दुनिया