पहले सा रंग-रूप तुम्हारा नहीं रहा दुनिया में और कुछ भी हमारा नहीं रहा ऐसे निकल गया है हुदूद-ओ-क़ुयूद से दरिया के आर-पार किनारा नहीं रहा तुझ से बिछड़ के दिल का वो नुक़सान हो गया अब तो कोई ख़सारा ख़सारा नहीं रहा चारों तरफ़ है सुर्ख़ इशारों का जमघटा रस्ते में कोई सब्ज़ इशारा नहीं रहा वो सब के सब फ़लक ने हैं ऊपर उठा लिए ज़ेर-ए-ज़मीन कोई सितारा नहीं रहा आधा गँवा के आप की चीख़-ओ-पुकार है लेकिन हमारे पास तो सारा नहीं रहा कितना पड़ा है फ़र्क़ मिरी माँ की मौत से अब मैं किसी की आँख का तारा नहीं रहा ले जा रहे हो कैसे मिरा दिल निकाल कर क्या मैं तुम्हारा सारे का सारा नहीं रहा मिट्टी में जा मिला है सिकंदर भी जीत कर ऐसा नहीं कि हार के दारा नहीं रहा यख़-बस्ता पानियों की तरह जम के रह गया जब से लहू में कोई शरारा नहीं रहा कुछ और सर-फिरों को भी वहशत ने आ लिया मजनूँ का दश्त पर वो इजारा नहीं रहा 'मसऊद' अपने पावँ पर हम क्या खड़े हुए बैसाखियों का कोई सहारा नहीं रहा