पहले तो दर्द-ए-दिल का ख़ुलासा करे कोई तब उन से शरह-ए-हाल-ए-तमन्ना करे कोई दर्द-ए-जिगर का पहले मुदावा करे कोई जब तू मसीह होने का दा'वा करे कोई मुमकिन नहीं कि सफ़्हा-ए-हस्ती पे मिल सके मेरे निशान-ए-क़ब्र को ढूँढा करे कोई बदले न करवटें भी कोई फ़र्श-ए-ख़्वाब पर ग़म से तड़प तड़प के सवेरा करे कोई सुनना है दर्द-ए-दिल की मिरे दास्ताँ अगर पत्थर का पहले अपना कलेजा करे कोई शाम-ए-शब-ए-फ़िराक़ है ताकीद-ए-ज़ब्त-ए-आह दिल में उठे जो दर्द तो फिर क्या करे कोई ख़ामोश इस तरह से हुए सकिनान-ए-क़ब्र देते नहीं जवाब पुकारा करे कोई 'शो'ला' मुहाल है कि बढ़े दिल की रौशनी जब तक ख़याल-ए-दोस्त न पैदा करे कोई