पहले तो दास्तान मुकम्मल दिखा कोई फिर एक से ही क्या हो मुसलसल दिखा कोई टूटा है आज आज जो इस को मैं रो तो लूँ ऐ ज़िंदगी तू ख़्वाब नया कल दिखा कोई क्या हैं मुसीबतें ये बताने का शुक्रिया अब ये बताओ इन का तुम्हें हल दिखा कोई वो हाल-ए-दिल सुना के मुझे रोया देर तक जब मैं ने बस कहा था कि जंगल दिखा कोई मुझ को भी ग़म से नाम कमाना सिखा ज़रा जो शा'इरी के रील हैं वाइरल दिखा कोई दुनिया जहाँ को छान लिया है मगर कहीं 'फ़ानी' तुम्हारे जैसा न पागल दिखा कोई