पहले तो ख़्वाब ज़ेहन में तश्कील हो गया फिर सैल-ए-वक़्त में कहीं तहलील हो गया बे-नूर रास्तों में जो भटके हुए थे लोग जुगनू भी उन के वास्ते क़िंदील हो गया कंकर मलामतों के गिराता है मिस्ल-ए-संग मुझ में कोई परिंद अबाबील हो गया वक़्त-ए-तुलूअ' आया गहन आफ़्ताब पर दिन चढ़ रहा था रात में तब्दील हो गया था जिस ग़नी के पास ख़ज़ीना-ए-इल्म-ओ-फ़न वो अहद-ए-नौ के हाथ में ज़म्बील हो गया अपने घरों के कर दिए आँगन लहू लहू हर शख़्स मेरे शहर का क़ाबील हो गया लौह-ए-जबीं पे वक़्त ने वो हर्फ़ लिख दिए चेहरा ग़म-ए-हयात की तफ़्सील हो गया सद शुक्र 'सोज़' मेरे ख़यालात के लिए मेरा क़लम वसीला-ए-तर्सील हो गया