पहली नज़र में ही मिरी नस-नस में रच गया क्या जाने उस का कौन सा अंदाज़ जच गया ख़ुश-फ़हमियों के आइना-ख़ानों में अब अभी वो कौन है जो संग-ए-मलामत से बच गया टूटा कब आइना ये किसी को ख़बर नहीं लेकिन शिकस्त-ए-अक्स से इक शोर मच गया सारे उसूल मुहर-ब-लब देखते रहे जब झूट की पनाह में हर एक बच गया इक खुरदुरी फ़सील-ए-शब-ए-ख़्वाब-ज़ार से फिसला जो आफ़्ताब तो चेहरा खुरच गया कुछ इस क़दर शदीद था तूफ़ान-ए-तेज़-रौ गहरे समुंदरों का भी पानी उलच गया जिस की न ताब ला सके ज़हरीले साँप भी किस तरह तुझ को 'कैफ़' वो ज़हराब पच गया