पहुँचा है उस के पास ये आईना टूट के किस से मिला है शीशा-ए-दिल हम से फूट के हुस्न-ए-मलीह का न किया ज़ख़्मियों ने शुक्र ऐ किर्दगार निकले नमक फूट फूट के सर फोड़ कर मुए जो तिरे संग-ए-दर से हम रह रह गए हसीन भी माथों को कूट के बे-नूर होने पर भी वही जोश-ए-गिर्या है आँखें हमारी और बहीं फूट फूट के ऐ रश्क-ए-माह रात को मुट्ठी न खोलना मेहंदी का चोर हाथ से जाए न छूट के तदबीर ज़हर देने की है पाएमालों को हीरे लगाए जाते हैं पन्नों में बूट के दिल ले के पलकें फिर गईं ज़ुल्फ़ों की आड़ में उल्टी फिरी ये फ़ौज सर-ए-शाम लूट के मौज़ूँ करेंगे वस्फ़ दिखाओ फकेतियाँ जाने न पाएँ हाथ से मज़मून छूट के देते हैं मेरे सामने ग़ैरों को ख़रपुज़े बाग़-ए-जहाँ में आप हैं मुश्ताक़ फूट के कंघी से ज़ुल्फ़ उलझी तो दिल टुकड़े हो गया आईने में ये बाल पड़े टूट टूट के रफ़्तार में न क्यूँ हो चमक रक़्स-ए-नाज़ की ज़ोहरा भी है शरीक सितारों में लूट के ऐ रश्क-ए-मह जो ज़ोहरा-ए-गर्दूं का बस चले तोड़े तुम्हारे नाच के ले जाए लूट के नक़्द-ए-हयात-ओ-जामा-ए-तन छीनती है क्यूँ ऐ मौत क्या करेगी मुसाफ़िर को लूट के अम्बर के बदले मुश्क है मौज-ए-ख़िराम में ज़ुल्फ़ों के बाल मिल गए फ़ीते से लूट के अफ़्शाँ जो छूटी आप के माथे से रात को तारे गिरे ज़मीं पर ऐ माह टूट के रो रो के रूह जिस्म से कहती है वक़्त-ए-नज़अ' ऐ घर मिलेंगे देखिए कब तुझ से छूट के मुझ को नहीं पसंद ये फ़रमाइश ऐ 'मुनीर' क्यूँ झूट बाँधूँ क़ाफ़ियों में टूट फूट के