पैवंद-ए-नौ ज़मीं की रिदा से लगा दिया मैं हिस्सा-ए-फ़ना था फ़ना से मिला दिया पल में समेट ली है सदी सी तवील रात फैला के एक दिन को ज़माना बना दिया उस ने मुझे दिखा के मिरी सम्त देख कर तितली का पर हथेली पे रख कर उड़ा दिया हर वक़्त इक ये धुन है कि में तज्ज़िया करूँ मुझ को मिरे जुनून-ए-तजस्सुस ने क्या दिया