पैकर-ए-ख़ाकी ये माना मौत से दो-चार है ज़िंदगी तेरा मगर रस्ता बहुत दुश्वार है जो है मुफ़्लिस वो ज़माने में ज़लील-ओ-ख़्वार है माल-ओ-ज़र हो पास जिस के साहब-ए-किरदार है रिस रहा है ख़ूँ बदन से भीगता है पैरहन ज़ख़्म है मेरे जिगर का या कि लाला-ज़ार है ख़ून-ए-दिल से मैं ने सींचा है तुझे ऐ ज़िंदगी मेरे ही दम से तो ये चेहरा तिरा गुलज़ार है भाप बन कर उड़ गया मेरी रग-ए-जाँ से लहू बारिशें अब ख़ून की होंगी यही आसार है जाने किस की जुस्तुजू ये कर रहे हैं रोज़-ओ-शब चाँद सूरज के लिए इक मंज़िल-ए-दुश्वार है बिक रहे हैं दीन-ओ-ईमाँ बिक रहे हैं जिस्म-ओ-जाँ ये जहान-ए-आरज़ू इक मिस्र का बाज़ार है आप के दिल का मुअ'म्मा ज़ेहन ने हल कर लिया आप के इंकार ही में आप का इक़रार है मुनफ़रिद मेरी ज़बाँ है ख़ूब-तर मेरा बयाँ फ़िक्र का 'तौक़ीर' इक दरिया पस-ए-दीवार है