पकड़ी किसी से जावे नसीम और सबा बंधे मौला करे कुछ अपनी भी अब तो हवा बंधे आशिक़ को बोग़-बंद में बाँधा है उस ने यूँ ता हो के दस्त-ए-बुक़चा में जैसे क़बा बंधे यूँ दूद आह का मिरी गुम्बद बँधा है याँ छत जैसे अब्र-ए-तीरा की तहतस्समा बंधे टुक आलम ऐ जुनूँ तू दिखा वो कि जिस से साफ़ लाहूत का समाँ मिरी आँखों में आ बंधे सरमा घुला के आँखों में निकला न कीजिए ऐसा न हो कि आप पे कुछ तूतिया बंधे क़ुदरत ख़ुदा के देखो कि चोरी तो हम करें और उल्टे दस्त-गीर हो दुज़द-ए-हिना बंधे अलझेड़े में फँसे थे तिरी ज़ुल्फ़ के सो वो उल्टे टँगे असीर हुए बारहा बंधे 'इंशा' सद-आफ़रीं तिरे ज़ेहन-ए-सलीम को मज़मूँ ज़ियादा इस से भला और क्या बंधे