पल भर का भरोसा नहीं सामान बहुत है ये सोच के दिल मेरा परेशान बहुत है शोहरत की ज़माने में तमन्ना न करो तुम अख़्लाक़ ही इंसान की पहचान बहुत है तुम कैसे भुला पाओगे भाई की मोहब्बत दीवार उठा लेना तो आसान बहुत है उड़ जाएँगे इक रोज़ ये ले कर के क़फ़स भी मज़लूम परिंदों में अभी जान बहुत है जिस सम्त भी जाओगे तुम्हें प्यार मिलेगा नफ़रत का मिरे शहर में फ़ुक़्दान बहुत है तहज़ीब-ओ-सक़ाफ़त हमें विर्से में मिली और अज्दाद का हम लोगों पे एहसान बहुत है हर हाल में रक्खा हमें ख़ुश-हाल जहाँ में अल्लह का 'क़मर' हम पे ये एहसान बहुत है