पलकें ज़मीं पे अपनी बिछाती है चाँदनी ऐसे में दिल हमारा लुभाती है चाँदनी जब साथ छोड़ देता है सूरज तो उस घड़ी रस्ता मुसाफ़िरों को दिखाती है चाँदनी वो देखते ही देखते आँखों के शहर में हर सू मोहब्बतों को सजाती है चाँदनी इंसान हो या कोई दरिंदा ज़मीन पर साए में अपने सब को बिठाती है चाँदनी हर राज़ से कराया मुझे उस ने आश्ना हर एक बात मुझ को बताती है चाँदनी वो भी है मुब्तला-ए-मोहब्बत मिरी तरह हर रात ख़ुद को ख़ुद ही जलाती है चाँदनी हमराह बादलों के हैं 'बिस्मिल' के दाग़-ए-दिल अपनी ज़िया में उन को छुपाती है चाँदनी