पलकों पर लहराया था झोंका पहली निद्रा का लम्हाती कैफ़िय्यत का नश्शा डरता डरता सा ख़ुश-रौनक़ सी सोचों का सौदा कोई सर में था बीती रुत का इक झोंका पीला रंग गुलाबों का उजली उजली किरनों में साया शोख़ सराबों का नया नया सा एक इम्काँ चारों जानिब फैला था इक गुम-सुम रूदाद मिली जब भी अंदर झाँका था मौसम की पहचान लिए मंज़र मंज़र रौशन था उभरा उभरा सा आलम डूबी सी आवाज़ों का दोराहे की सोचों में रस्ता सीधा सीधा सा शायद नई कहानी में क़िस्सा वही पुराना था तेरी याद की लज़्ज़त में भूला सा इक वा'दा था नैनों में भर लाए हैं मंज़र लाख सवाबों का