पंछियों की किसी क़तार के साथ बाल-ओ-पर भी गए बहार के साथ काम आसान तो नहीं फिर भी जी रहे हैं दिल-ए-फ़िगार के साथ आँसुओं की तरह वजूद मिरा बहता जाता है आबशार के साथ उड़ रहा है जो तेरी गलियों में मैं भी शामिल हूँ उस ग़ुबार के साथ शाम-ए-वहशत कहाँ पे ले आई तू मुझे अपने इंतिज़ार के साथ और भी इक हिसार है 'अज़हर' शहर-ए-ज़िंदाँ के इस हिसार के साथ