पर ज़रा टूटे हुए से मिरी तक़दीर के हैं हौसले ज़िंदा मगर आज भी ता'मीर के हैं जब लहू आँख से टपकेगा चमक जाएँगे रंग फीके अभी एहसास की तस्वीर के हैं ख़्वाब जो तुम ने दिखाए थे वो सब देख लिए मसअले अब तो यहाँ ख़्वाब की ता'बीर के हैं ख़ूब पहचानता है दिल तिरे तीरों का मिज़ाज ज़ख़्म जितने भी लगे हैं वो तिरे तीर के हैं ज़िंदगी एक तसलसुल ग़म-ओ-आलाम का है और हम लोग भी क़ैदी उसी ज़ंजीर के हैं नफ़रतें फूट पड़ीं बन के लहू का सैलाब कितने ज़हरीले ये जुमले तिरी तक़रीर के हैं साहिब-ए-लौह-ओ-क़लम उस के सिवा कोई नहीं सारे गुल-बूटे 'नियाज़' उस की ही तहरीर के हैं