पर्दा तुम्हारे रुख़ से हटाना पड़ा मुझे यूँ अपनी हसरतों को जगाना पड़ा मुझे मैं ने तो खेल खेल में तोड़ा था उस का दिल फिर सारी उम्र उस को मनाना पड़ा मुझे जब इश्क़ इक ग़रीब से मुझ को हुआ तो फिर दिल का जो मोल था वो घटाना पड़ा मुझे उस ने कहा मैं जी नहीं पाऊँगी तेरे बिन इस वास्ते वो रिश्ता निभाना पड़ा मुझे 'फ़ैसल' वो सारे लोग थे बहरे इसी लिए ख़ामोश रह के शोर मचाना पड़ा मुझे