पर्दा-ए-रुख़ क्या उठा हर-सू उजाले हो गए सब अँधेरे दामन-ए-शब के हवाले हो गए मैं ने जब चाहा कि हों सैराब दिल की हसरतें सारे लम्हे ज़िंदगी के ख़ुश्क प्याले हो गए बुग़्ज-ओ-नफ़रत के धुवें से घुट रहे थे सब के दम जल गईं जब प्यार की शमएँ उजाले हो गए हसरतों को मंज़िलें मिल जाएँ मुमकिन ही नहीं ख़्वाहिशों के रास्ते अब और काले हो गए अब कहीं ऐसा न हो नासूर बन जाएँ ये सब दिल पे जितने भी निशाँ थे वो तो छाले हो गए मुझ को मैदान-ए-मुसीबत में अकेला देख कर मुझ से आगे मेरी हिम्मत के रिसाले हो गए साँप की मानिंद ये भी एक दिन डस जाएगा चश्म-ए-हसरत में बहुत दिन ख़्वाब पाले हो गए एक कोशिश और कर के देखते 'शारिब'-मियाँ अब बहुत दिन आप को कीचड़ उछाले हो गए