पर्दा-ए-साज़ में भी सोज़ का हामिल होना शम्अ' से सीख शरीक-ए-ग़म-ए-महफ़िल होना बज़्म-ए-हस्ती पे है मुश्किल मिरा माइल होना मुझे आता नहीं सर-गश्ता बातिल होना नाख़ुदा तू मुझे आलूदा-ए-तूफ़ाँ न समझ मौज-ए-दरिया को सिखाता हूँ मैं साहिल होना साज़गार आज मुझे राह भी है रहबर भी मेरी क़िस्मत में है आसूदा-ए-मंज़िल होना रिश्ता-ए-होश है वाबस्ता तुझी से ऐ दोस्त कभी मुमकिन नहीं तुझ से मिरा ग़ाफ़िल होना दिल से होशियार कि है दिल ही तरह ऐन हयात मौत से भी है सिवा बे-ख़बर-ए-दिल होना सई के बा'द न कर काविश-ए-फ़िक्र-ए-अंजाम लानत-ए-सई है ज़हमत-कश-ए-हासिल होना बारिश-ए-अब्र से बिजली की लगी बुझ न सकी ग़ैर-मुमकिन है इलाज-ए-तपिश-ए-दिल न होना हर क़दम पर रह-ए-हस्ती में नई ठोकर है ऐ 'ज़िया' सहल नहीं फ़ाएज़-ए-मंज़िल होना