पर्दा-ए-शब की ओट में ज़ोहरा-जमाल खो गए दिल का कँवल बुझा तो शहर तीरा-ओ-तार हो गए एक हमें ही ऐ सहर नींद न आई रात भर ज़ानू-ए-शब पे रख के सर सारे चराग़ सो गए राह में थे बबूल भी रूद-ए-शरर भी धूल भी जाना हमें ज़रूर था गुल के तवाफ़ को गए दीदा-वरो बताएँ क्या तुम को यक़ीं न आएगा चेहरे थे जिन के चाँद से सीने में दाग़ बो गए दाग़-ए-शिकस्त दोस्तो देखो किसे नसीब हो बैठे हुए हैं तेज़-रौ सुस्त-ख़िराम तो गए अहल-ए-जुनूँ के दिल 'शकेब' नर्म थे मोम की तरह तेशा-ए-यास जब चला तूदा-ए-संग हो गए