पर्दे में सम्त-ए-ग़र्ब के महताब भी गया आया न यार पास मिरा ख़्वाब भी गया तौबा तो की मगर न हुई दिल की कम हवस लो हाथ से वो जाम-ए-मय-ए-नाब भी गया वो सख़्त-जाँ हूँ मैं कि न आई क़ज़ा मुझे मेदे में बारहा मिरे ज़हराब भी गया मस्जिद में सर झुकाया जो मैं ने प-ए-नमाज़ सज्दे के साथ ही ख़म-ए-मेहराब भी गया साया-फ़गन जो सर पे मिरे इब्तिदा से था है है वो आज गुलबुन-ए-शादाब भी गया याद आई नाख़ुदा को मिरी ना-शनावरी सर पर से जब गुज़र मिरे सैलाब भी गया आ यार साथ साथ शब-ए-पर्दा-पोश के अब तो फ़रोग़-ए-मेहर-ए-जहाँ-ताब भी गया जादू ख़याल-ए-यार है ऐ हम-नशीं न पूछ पास-ए-लिहाज़-दारी-ए-अहबाब भी गया दुनिया से कैसे कैसे जफ़ा-केश उठ गए हम 'शाद' ही को रोते थे 'नायाब' भी गया