पर-ए-जिब्रील भी जिस राह में जल जाते हैं हम वहाँ से भी बहुत दूर निकल जाते हैं महफ़िल-ए-दिल को है माँगे के उजाले से गुरेज़ दीप दाग़ों के सर-ए-शाम ही जल जाते हैं साफ़ उड़ जाता है ख़ासान-ए-ख़राबात का रंग हम वो मय-ख़्वार हैं पी पी के सँभल जाते हैं इक हक़ीक़त ही हक़ीक़त है अज़ल हो कि अबद वैसे अफ़्सानों के उन्वान बदल जाते हैं देखिए नक़्श-ए-कफ़-ए-पा-ए-वफ़ा का ए'जाज़ रास्ते दूध के मानिंद उबल जाते हैं ज़िंदगी अस्ल में तामीर-ए-मोहब्बत है 'हयात' दे के हम दहर को पैग़ाम-ए-अमल जाते हैं