परेशाँ है सितमगर हौसला गुम हो गया है गुलों में ख़ंजर-ए-दस्त-ए-जफ़ा गुम हो गया है निहाँ है एक नुक़्ते में निज़ाम-ए-ज़िंदगानी वजूद-ए-हर्फ़ तो है तर्जुमा गुम हो गया है चले आओ हमारी ख़ुशबुओं के रास्ते पर अगर शहर-ए-मोहब्बत का पता गुम हो गया है ज़मानत में किसी की दे दिया है मुतमइन हैं जहाज़-आरज़ू उड़ता हुआ गुम हो गया है अंधेरा हो गया था सहन-ए-सज्दा में हमारे जबीं से नय्यर-ए-ख़ाक-ए-शिफ़ा गुम हो गया है क़सीदे हुस्न-ए-यूसुफ़ के जो अब तक पढ़ रहा था जमाल-ए-अश्क में वो आइना गुम हो गया है निगाह-ए-चश्म-ए-इरफ़ान-ओ-शुऊ'र-ए-आगही दे यहाँ हम अक़्ल वालों का ख़ुदा गुम हो गया है तुम्हारी सरहद-ए-इमकान छूने को गया था हमारा ताइर-ए-फ़िक्र-ए-रसा गुम हो गया है