पारसाई उन की जब याद आएगी मुझ से मेरी आरज़ू शरमाएगी गर यही है पास-ए-आदाब-ए-सुकूत किस तरह फ़रियाद लब तक आएगी ये तो माना देख आएँ कू-ए-यार फिर तमन्ना और कुछ फ़रमाएगी जाने दे सब्र ओ क़रार ओ होश को तू कहाँ ऐ बे-क़रारी जाएगी हिज्र की शब गर यही है इज़्तिराब नींद ऐ 'तस्लीम' क्यूँकर आएगी