मुझ को क्या फ़ाएदा गर कोई रहा मेरे ब'अद सारी मख़्लूक़ बला से हो फ़ना मेरे ब'अद मर चुका मैं तो नहीं उस से मुझे कुछ हासिल बरसे गर पानी की जा आब-ए-बक़ा मेरे ब'अद चाहने वालों का करता है ज़माना मातम मातमी रंग में है ज़ुल्फ़-ए-रसा मेरे ब'अद रोएँगे मुझ को मिरे दोस्त सब आठ आठ आँसू बरसेगी क़ब्र पे घनघोर घटा मेरे ब'अद यूँ ही खिलती रहेंगी सेहन-ए-चमन में कलियाँ यूँही चलती रहेगी बाद-ए-सबा मेरे ब'अद जान देने को न उन पर कोई तय्यार हुआ गोया जाँ-बाज़ ज़माने में न था मेरे ब'अद हाथ से उन के टपकते नहीं मय के क़तरे अश्क-ए-ख़ूँ रोता है ये रंग-ए-हिना मेरे ब'अद हश्र तक कोई न रोकेगा सितम-गारों को जो ख़ुदा पहले था वो ही है ख़ुदा मेरे ब'अद जीते-जी देते थे जो गालियाँ मुझ को 'परवीं' मग़फ़िरत के लिए करते हैं दुआ मेरे ब'अद