पास अपने बोरिया बिस्तर न था इतना सरमाया भी अपने घर न था दश्त जंगल साइबान-ओ-दर न था मैं ही मैं था और कोई मंज़र न था दाएरों में भी न गुज़री ज़िंदगी ख़्वाहिशों का भी कोई मेहवर न था एक ज़ंजीर-ए-हवस कार-ए-निशात और कोई सिलसिला हट कर न था क़त्ल करता था मुझे वो पय-ब-पय उस के हाथों में मगर ख़ंजर न था अपने ही हम-ज़ाद से डरता हूँ मैं यूँ किसी आसेब से कुछ डर न था हम ये सौदा अपने सर में ले चले उस गली में एक भी पत्थर न था