पाता नहीं हूँ और किसी काम से लज़्ज़त जो कुछ कि मैं पाता हूँ तिरे नाम से लज़्ज़त कैफ़ियतें इस दीदा-ए-मयगूँ से जो पाईं पाई न कभी बादे से और जाम से लज़्ज़त ज़ाहिर है तिरी नर्गिस-ए-मख़मूर से मस्ती टपके है तिरे लाल-ए-मय-आशाम से लज़्ज़त पाता हूँ मज़ा बेकली और दर्द का ऐसा पावे है कोई जैसे कि आराम से लज़्ज़त रखता है हवस बोसे की तेरे शह-ए-'आलम' पावेगा बहुत तेरे इस इनआम से लज़्ज़त