पत्ता हूँ आँधियों के मुक़ाबिल खड़ा हूँ मैं गिरते हुए दरख़्त से कितना बड़ा हूँ मैं परचम हूँ रौशनी का मिरा एहतिराम कर तारीकियों का रास्ता रोके खड़ा हूँ मैं मेरे हरे वजूद से पहचान उस की थी बे-चेहरा हो गया है वो जब से झड़ा हूँ मैं मत सोच ये कि मेरी किसी ने नहीं सुनी ये देख अपनी बात पे कितना अड़ा हूँ मैं अब उस के राब्ते भी मिरे दुश्मनों से हैं जिस के वक़ार के लिए 'अज़हर' लड़ा हूँ मैं