पत्थर बना कर अर्श से फेंका गया था एक मैं शायद ख़ुदा से पहले ही पूजा गया था एक मैं तख़्लीक़-कारी में तुझे हासिल महारत है मगर किस इन्हिमाक-ओ-शौक़ से सोचा गया था एक मैं तिफ़्ली से पीरी तक मिरे अहवाल सुन लेना कभी वक़्त-ए-विलादत ही बहुत कोसा गया था एक मैं नक़्श-ए-क़दम भी आप का इक साँप का फन ही लगा साया-नुमा ख़ंजर से ही मारा गया था एक मैं दिन सा-रे-गा-मा में कटा शब पा-धा-नी-सा में कटी निकली सुरीली एक वो कान आश्ना था एक मैं कश्कोल भी बन जाएगी इक रोज़ अपनी खोपड़ी मिट्टी के बर्तन की तरह बरता गया था एक मैं गाएक हुआ शाइ'र हुआ आशिक़ हुआ सूफ़ी हुआ दीवाने-पन की हद न थी क्या क्या बना था एक मैं क्या तुम ही 'काविश' हो मियाँ कुछ ए'तिबार आता नहीं अल्लाह-मियाँ ही एक हैं कहते हो क्यूँ था एक मैं