पत्थर उठाया उस ने तो मजबूर हो गए करते भी क्या कि शीशा थे हम चूर हो गए मेरे मकाँ के शो'लों में जलने की देर थी हालात उस के बाद ब-दस्तूर हो गए क्यों ज़िंदगी के रक़्स में शामिल नहीं हैं अब ये जा के उन से पूछ जो मा'ज़ूर हो गए हम आफ़्ताब रख के रहे इंकिसार में जुगनू मिला उन्हें तो वो मग़रूर हो गए ये हक़-कुशी का दौर है इस वास्ते तिरे नाहक़ मुतालिबात भी मंज़ूर हो गए 'अब्बाद' फ़िक्र मेरी थी सोचें मिरी मगर निकलीं क़लम से जिन के वो मशहूर हो गए