पाँव जब मेरे आसमान में थे उस घड़ी आप ही ध्यान में थे जिस घड़ी हम बहुत थे पुर-उम्मीद उस घड़ी आप के जहान में थे उसरत-ए-ज़ीस्त हम ग़रीबों पर धूप छूटी तो हम थकान में थे सैर दीवार-ओ-दर की की हम ने ऐश थी रात हम मकान में थे याद रहते तो चूर हो जाते ख़्वाब क्या क्या मिरे गुमान में थे याद है हम भी कार-आमद थे तीर थे और तिरी कमान में थे किस क़दर हो चली है बे-ज़ारी दिल में भी हम थे हम तो जान में थे