पेच भाया मुझ को तुझ दस्तार का बंद है दिल तुर्रा-ए-ज़रतार का जी फँसा है जा के उस ज़ुल्फ़ों के बीच दिल शहीद उस नर्गिस-ए-बीमार का पेच में हूँ तेरे ढीले पेच सूँ महव हूँ इस चीरा-ए-ज़रतार का तुझ को है हम से जुदाई आरज़ू मेरे दिल में शौक़ है दीदार का क्यूँ न बाँधे दिल को 'फ़ाएज़' ज़ुल्फ़ सूँ शौक़ है काफ़िर के तीं ज़ुन्नार का