पेच फ़िक़रे पर किया जाता नहीं कोई धागा दो बटा जाता नहीं बोसा-ए-लब ग़ैर को देते हो तुम मुँह मिरा मीठा किया जाता नहीं ज़ोफ़ ने यक-दस्त तोड़े पा-ए-ज़ीस्त नब्ज़-ए-मुर्दा हूँ हिला जाता नहीं ज़ुल्फ़ से सुम्बुल करे क्या हम-सरी पेच चोटी का किया जाता नहीं तेग़-ए-हुस्न-ए-यार से मजरूह है तोता-ए-ख़त से उड़ा जाता नहीं क़ब्र का तालिब अबस है जिस्म-ए-ज़ार चश्म-ए-दुश्मन में समा जाता नहीं क्या कशीदा सूरत-ए-तस्वीर हूँ ना-तवानी से खिंचा जाता नहीं ज़ोफ़ से पहुँचेंगे क्यूँ-कर आप तक आप से बाहर हुआ जाता नहीं खिंच सके तस्वीर बेताबी में क्या एक सूरत पर रहा जाता नहीं रूह को भी बोसा-ए-लब की है चाट मर गए लेकिन मरा जाता नहीं मुर्दे से बद-तर हूँ गो जीता हूँ मैं रंग-ए-हस्ती में मिला जाता नहीं रंग क्या क़द्द-ए--ख़मीदा का खिले छल्ले के गुल से खिला जाता नहीं रोज़ अंगिया होती है आरास्ता कब नया बंगला सजा जाता नहीं पेच में आने को ताक़त चाहिए तेरे दम पर भी चढ़ा जाता नहीं इत्र खिंचता है हमारी ख़ाक का हाथ मलने का मज़ा जाता नहीं चुटकियाँ मेरे सरापे में न लो जामा-ए-हस्ती चुना जाता नहीं कोई क्या हम को बनाएगा 'मुनीर' ऐसे बिगड़े हैं बना जाता नहीं